Dushyant Kumar ( दुष्यन्त कुमार )

आज सड़कों पर लिखे हैं

आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख
पर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।

एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।

अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह
यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।

वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।

ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।

राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई
राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख।


Dushyant Kumar ( दुष्यन्त कुमार ) (Navada, Uttar Pradesh, India, 1931 –  1975). Poeta, dramaturgo, novelista, autor de relatos y traductor.